Friday, November 29, 2013

जी चाहता है …

आज़ाद परिंदे की तरह
उड़ने को ,
गिरने को , गिरकर सँभलने को …
आसमान की ऊँचाईयों को
छूने को
जी चाहता है …

अनदेखे अनजाने
रास्तों पर चलने को ,
थमने को , थमकर फिर चलने को …
रास्तों के फ़ासले लाँघ कर ,
नये रास्ते तय करने को
जी चाहता है …

बहते हुए झरने की तरह ,
पहाड़ों से खिलखिलाते हुए
गुज़रने को …
कभी दरिया तो कभी नदियों
का वजूद सँवारने को
जी चाहता है …

कुछ कर गुज़रने को ,
ज़िन्दगी जीने को ,
जी चाहता है …
अब
जी चाहता है …

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