फूलों का वजूद


फूल तू चाहता है
हर रंग के ,
अपना पिटारा भरना चाहता है
उनकी सुगन्ध से ,
अपनी सेज सजाना चाहता है
उनकी मुलैयिमियत से ,
अपने गले का हार महकाना चाहता है
उनके यौवन से ,
अपने थाल सजाना चाहता है
उनकी शीतलता से  …

इतनी बेदर्दी से
उनका इस्तेमाल तू करता है ,
अपने पैरों तले उनके वजूद को रौंद कर
आगे तू बढ़ जाता है  …

इस सब के बाद अगर
वही फूल तोड़ते वक़्त ,
एक कांटा तुझे चुभ जाये ,
तो दर्द से तू कराहता है  …

कितना ख़ुदग़र्ज़ है तू ऐ इंसान ,
कभी उन फूलों का दर्द बांट कर तो देख  …
कराहने से पहले ,
उन बेजुबानों की चीख़ सुन कर तो देख  …
आंसू टपकाने से पहले ,
ज़ुल्म सहते उनके दिलों के दर्द को टटोल कर तो देख  …

किसी के वजूद को मिटाने से पहले ,
तेरा हश्र क्या होगा ,
यह सोच कर तो देख  …
मिट्टी से उपजा है ,
मिट्टी में मिल जाना है ,
उसी मिट्टी की उपज को उखाड़ने तू चला है  …
अपना हक़ समझ कर ,
उन मासूमों का हक़ मिटाने तू चला है   …


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