Friday, November 22, 2013

सफ़रनामा

कहाँ जा  रहे थे ,
क्यों जा रहे थे…

रेत के टीलों पर ,
बर्फीले पहाड़ों की चोटीयों पर ,
सागर के किनारे सहमती लहरों पर  …

अँगारे बरसाती सुनहली धूप में ,
आँधी, तूफ़ान व बारिश के पानी में …

ठहाके लगाते लोगों की भीड़ में ,
चीखते चिल्लाते मासूमों के बीच से …

घनी काली रात से ,
सुबह की लाली तक …

नहीं थी ख़बर …

कहाँ जा रहे थे ,
क्यों जा रहे थे ,
बस …
हम चलते जा रहे थे …
हम चलते जा रहे थे …


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