Sunday, February 16, 2014

एक ख्वाहिश

एक ख्वाहिश है फिर से जगी ,
एक कसक है फिर से उठी ,
एक आरज़ू है फिर से पली,
एक तमन्ना है फिर से उभरी …

ज़िन्दगी को खुल कर जीने की ,
मंज़िलों पर फतह पाकर
नयी मंज़िलों की ओर बढ़ जाने की ,
ख़ुद को ज़ाहिर कर पाने की ,
एक अलग पहचान बनाने की …

खुशियों के पैग़ाम बाँटकर
ज़िंदगियाँ सँवारने की ,
ग़मों की चादर छीनकर
हँसी की फुहार चलाने की ,
अनजानी आँखों से आँसू चुराकर
ख़ुद उस सैलाब में बह जाने की ....

दीये की जलती हुई लौ बनकर
अँधेरों को उजियारों में बदलने की ,
फूलों की तरह खिलकर
खुशबू हर तरफ महकाने की …

एक ख्वाहिश है जगी ,
एक कसक है उठी  …


1 comment:

  1. Ek achchi soch se likhi gyi kavita,
    zindagi me kuch achcha karne ka jazba,
    apne hiton se pare jakar sochna,
    iss khwaish ko kabhi dabne mat dena ---

    ReplyDelete

All is Not Lost