Wednesday, December 18, 2013

ख्वाबों का कारवाँ

ख्वाबों का कारवाँ लिये ,
हम चल पड़े …

दौड़ते कूदते ,
फ़ासले लाँघते गये …

डगमगाये भी हम ,
लड़खड़ाये भी हम ,
गिरते हुए करहाये भी हम ,
पर
उठ कर फिर चल पड़े …

ख्वाबों को मुक़म्मल करने ,
कुछ पाने की कशिश से खिंचे ,
हम फिर चल पड़े …

सब्र टूटा ,
साथ छूटा ,
बहुत कुछ लुटा ,
पर
अपने ख्वाबों को
सीने से लगाये
हम फिर चल पड़े …

चाहे जो छीन लो मुझसे ,
मगर छीन न पाओगे ,
मेरे ख्वाब , मेरे सपने ,
ख़ुशनुमा यादों के वो लम्हे …
हमसफ़र , हमनवाँ ,
मेरे ख्वाब और
ख्वाबों का कारवाँ …



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